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भटकती आत्मा भाग - 27




भटकती आत्मा भाग –27

राघोपुर का सरदार निराश होने लगा। वह मनकू माँझी की सधी निशानेबाजी को देखकर काँप गया,फिर स्वयं मोर्चा संभाला। अब इधर सरदार और उधर मनकू माँझी डटा हुआ था। जमुनाबारी का सरदार मनकू माँझी को गर्व और प्रशंसा पूर्ण दृष्टि से देखे जा रहा था। हटात् मनकू ने दौड़कर सरदार को धर दबोचा,तत्पश्चात अपने सरदार को देखा। इशारा पाकर उसने राघोपुर के सरदार को बांध दिया। जब अपने सरदार को असहाय बंधा हुआ उनके आदमियों ने देखा,तब हथियार डाल दिया। जमुना बाड़ी के नवयुवकों ने सम्मिलित स्वर में नारा लगाया  -  
    "हमारा सरदार जिंदाबाद,मनकू माँझी जिंदाबाद"।
   अब जमुना बाड़ी के सरदार ने राघोपुर के सरदार से कहा  -  "कहो अब तुम्हारा क्या इरादा है"?
   "अब मैं क्या कहूं,तुम  विजेता हो, तुम्हारी जैसी इच्छा हो वह करो"।
   "अभी भी तुम अपने निकम्मे पुत्र के साथ मेरी बेटी के विवाह का सपना देखोगे"?
   "नहीं सरदार अब मुझे ज्यादा लज्जित मत करो। मैं तुम्हारी बेटी से अपनी गलती के लिए माफी मांग लूंगा। आज से वह मेरी भी बेटी है,पुत्रवधू नहीं।वैसे भी वह मेरी पुत्रवधू किसी भी स्थिति में नहीं बन सकती है, वह तो मात्र एक माध्यम बनी अपनी शर्त मनवाने के लिए "।
     राघोपुर के सरदार की बातों से आश्चर्यचकित हुआ जमुनाबाड़ी का सरदार फिर भी उसने उस पर बिना ध्यान दिए गंभीरता से कहा–
   "तुम मेरी बेटी को आदर के साथ मंगवा दो"। 
  "ऐसे नहीं सरदार,आज करमा है। मेरी बुद्धि झूठे बल के गर्व में कलुषित हो गई थी। इसलिए पर्व का भी ध्यान नहीं रखा, तथा युद्ध करने की ठान लिया। आज से हम पुरानी सारी दुश्मनी को भूल कर मित्र बनना चाहते हैं,आपका क्या इरादा है"?
    "मुझे भला क्या एतराज हो सकता है, परन्तु तुम्हारी बुद्धि सदा ऐसी रहेगी या नहीं,उसका क्या भरोसा"|
   "हां ठीक ही कहते हो सरदार,मैं हमेशा इस दोस्ती को कायम रखने के लिए अपनी बेटी की शादी तुम्हारे खास आदमी के साथ करना चाहता हूं। कौन है वह युवक,जिसने मुझे पराजित किया उससे मैं अपनी बेटी का विवाह कर दूंगा तब तो तुम्हें विश्वास होगा मेरी सच्चाई पर"?
  राघोपुर के सरदार का इशारा दूर पर खड़े मित्रों में घिरे मनकू माँझी की तरफ था। जमुना बाड़ी का सरदार कुछ देर के लिए गंभीर हो गया फिर उसने कहा -
   "कोई एतराज नहीं है मुझे,परन्तु वह बस मेरा मेहमान है। यह जंगल में बेहोश पड़ा था,सांप ने काट लिया था उसे। कहां का है,यह भी मैं नहीं जानता। वह यदि इस शादी को स्वीकार करता है तो मुझे कोई एतराज नहीं होगा"।
  जमुना बाड़ी के सरदार के इशारे पर राघोपुर के सरदार का बंधन खोल दिया गया था। दोनों सरदार आपस में गले मिल गये। गिला शिकवा सब दूर हो गया था। राघोपुर के सरदार ने कहा - 
   "आज आप लोग हमारे मेहमान हुए। इसलिए हमारी बस्ती में पधारें। हर वर्ष इस मित्रता की खुशी में दोनों गांव वाले मिलकर इसी स्थान पर कर्मा का त्योहार  धूमधाम से मनाया करेंगे"।
   जमुना बाड़ी का सरदार अपने आदमियों के साथ राघोपुर चल पड़ा,तथा एक आदमी को इसकी सूचना देने जमुनाबाड़ी भेज दिया गया। हंसते-खेलते और नगाड़े बजाते दोनों गांव के नवयुवक राघोपुर चले जा रहे थे। मनकू माँझी लोगों के बीच विशेष सम्मानित अतिथि का सम्मान पाकर झूम रहा था। गांव की सीमा पर राघोपुर की कुछ युवतियां इकट्ठी हुईं। सबने इन लोगों का स्वागत किया। फिर तो गांव में उल्लास की सरिता प्रवाहित होने लगी l मनकू माँझी सरदार के साथ उनके अंत:पुर में प्रवेश किया। एक विशेष आसन पर मनकू माँझी को सरदार ने बैठाया। फिर धन्नो को बुलाया गया। कुछ देर के बाद सरदार की पुत्री शब्बो धन्नो को साथ लिए आ पहुंची।
   धन्नो पर दृष्टि पड़ते ही मनकू माँझी प्यारी बहना कहता हुआ आसन से उठ खड़ा हुआ। उसने धन्नो को अपने गले से लगा लिया और भावावेश में उसके मस्तक को चूम लिया। धन्नो की आंखों से  खुशी के आंसू निकलने लगे। मनकू माँझी का गला भी भर आया। सरदार भाई-बहन के अनूठे मिलन को प्रेम से देखता रहा,फिर मुस्कुरा कर उठा तथा एक ओर चल पड़ा। कुछ देर के बाद जमुनाबाड़ी के सरदार को अपने साथ लेते हुए राघोपुर के सरदार वापस आए।
    फिर थोड़ी देर बाद ही राघोपुर के सरदार का पुत्र उपस्थित हुआ। वह मन ही मन लज्जित था। उसने जमुना बाड़ी के सरदार को प्रणाम किया,परंतु उसके पिता ने कहा  - 
     "बेटे तुमने जो गलती की है उसकी माफी सरदार से तथा उनकी पुत्री से मांगो। आज से यह तुम्हारे पिता हुए,इसलिए सोच सकते हो धन्नो तुम्हारी क्या होगी"।
  जमुनाबाड़ी के सरदार के मुख पर  प्रश्नवाचक चिन्ह था। वह मन ही मन सरदार की धृष्टता पर क्रोधित भी हो उठा था,क्योंकि उसने सोचा कि इसका तात्पर्य यह हुआ कि सरदार मेरी बेटी को शायद पुत्रवधू बनाने की सोच रहा है। अन्यथा मुझे पिता संबोधित करने का क्या औचित्य था, चाचा भी तो कह सकता था। लेकिन उसने कहा था इसकी पुत्रवधू मेरी बेटी बन ही नहीं सकती है, इसका क्या तात्पर्य था ?
वह इस संबंध में कुछ पूछना ही चाहता था तभी वह चौक पड़ा। राघोपुर का सरदार ने रहस्यमयी अंदाज में कह रहा था   - 
   "आज धन्नो भाई विहीन नहीं रह गई है। इसको एक ही साथ दो भाई इस पुनीत अवसर पर मिल गये हैं "।
  जमुना बाड़ी के सरदार की आंखें आश्चर्य से फैल गई थीं। विस्मय विमुग्ध उसने सुना,राघोपुर का सरदार कह रहा था -   
    "बेटी धन्नो तुम्हारे एक नहीं दो-दो भाई मिल गए हैं। मनकू माँझी तो तुम्हारा भाई बन ही गया है,एक और भाई यह मेरा पुत्र है,जो तुमको मेरे इशारे पर ही यहाँ उठा लाया था"।
जमुना बाड़ी का सरदार आश्चर्यचकित सा इस सरदार की बात सुनता रहा -  
   "हां सरदार मैंने तुम्हें क्रोध दिलाने के लिए ही तुम्हारी बेटी को पुत्रवधू बनाने की बात कही थी। यह तो कभी हो ही नहीं सकता था। भला भाई की शादी बहन के साथ हो सकती है ! नहीं ! यह तो पाप है ! बहुत दिनों से मैं तुमसे एक बात बताना चाहता था,परन्तु पुरानी दुश्मनी के कारण तुम कुछ और न सोचो,या मुझे कायर न समझो,इसीलिए कह नहीं पा रहा था। तुमसे मुलाकात करना भी तो आसान नहीं था। मैं अपनी दुश्मनी समाप्त कर दोनों बस्ती में मित्रता का प्रारंभ करना चाहता था,परन्तु तुम्हारी बस्ती के लोग और तुम इसके लिए कभी तैयार नहीं होते ! हमारी सामान्य छोटी-छोटी झड़प और लड़ाइयां होती रहती थी जिससे हम दोनों ही कमजोर हो रहे थे।कभी 1-2 तुम्हारी तरफ से घायल होते थे तो उससे कहीं अधिक हमारी तरफ से भी हो जाते थे ।
 परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास था यदि मैं मित्रता की बात करता तो तुम इसे कभी भी मानते नहीं। क्योंकि तुम्हें हम पर विश्वास ही नहीं होता,हमारी पुरानी दुश्मनी के कारण। तुमसे और तुम्हारी बस्ती से मित्रता करने के लिए ईश्वर ने मुझे एक बड़ा कारण दे दिया था। इसलिए मैं पुरानी दुश्मनी भुलाकर तुमसे मित्रता करना चाहता था।
     छोटी-छोटी लड़ाईयों में हमने जितना नुकसान सहा है उससे घबराकर ही निर्णय लिया आज का आमने सामने का यह युद्ध कर ही लिया जाए। हमारा कुछ नुकसान तो अवश्य होगा परन्तु हमेशा की दुश्मनी समाप्त हो जाएगी। आमने सामने होकर पूर्ण युद्ध का फैसला किया। पुरानी दुश्मनी के कारण तुम्हारी मुलाकात हमारे साथ युद्ध के माध्यम से ही सम्भव हो सकता था,और इस युद्ध में पराजित कोई भी हो उसके बाद दुश्मनी समाप्त करने का निर्णय हमने पहले ही ले लिया था | यदि तुम भी पराजित होते तो भी मुझे मित्रता का ही हाथ बढ़ाना था l और उस मित्रता के रूप में तुम्हें एक बड़ा अमूल्य उपहार भी देना था जो तुम्हारे लिए अविस्मरणीय होता। मैं तुम्हारे प्रति आभारी हूं,विजेता होकर भी तुमने हमारी मित्रता का हाथ थाम लिया"|
  "पहेली क्या बुझा रहे हो सरदार | तुम मुझसे सब कुछ स्पष्ट क्यों नहीं कहते हो | तुम्हारा पुत्र भाई किस प्रकार हो गया मेरी बेटी का,यह स्पष्ट करो | क्या सिर्फ हमारे नए बने संबंधों के कारण,या तुम्हारे दिल में कुछ और भी बात है"?
   "बताऊंगा सब कुछ बताऊंगा परन्तु ऐसे नहीं,पहले मुंह मीठा करो तुम लोग | रात्रि में दोनों गांव के सब लोग एक साथ मिलकर करमा पर्व मनाएंगे,और मैं कर्मा पूजा की कथा के साथ वह घटना सुनाऊंगा जो तुम से संबंधित है" - 
    कहता हुआ सरदार ने मनकू माँझी और जमुना बाड़ी के सरदार के मुंह में जबरन कुछ पकवान ठूँस दिये l फिर ठहाका लगाकर हंसने लगा l कुछ देर बाद जमुना बाड़ी के आए हुए सभी युवकों के बीच पकवान परोसे जा रहे थे l सब के मुख पर प्रसन्नता थी l आश्चर्य भी कम नहीं था l कुछ नवयुवकों के बलिदान के फलस्वरूप यह मित्रता कायम हुई थी l परन्तु यह ऐसी मित्रता थी जो अब कभी नहीं टूट सकती थी l जमुना बाड़ी के सरदार ने एक युवक को अपने गांव में दौड़ा दिया था l सबको तैयार होकर उस जंगल के मध्य में इकट्ठा होने को कहा गया था l 

           क्रमशः



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